गीतकार - हसरत जयपुरी | गायक - मुकेश | संगीत - शंकर, जयकिशन | फ़िल्म - नादान: | वर्ष - 1971
View in Romanवफ़ा के नाम
पर मिटना नहीं
आया अगर तुझको
तो फिर जिस्म-इ-वफ़ा
बाजार में
क्यूँ बेचती है तू
अगर तू आबरू
अपनी बचा लेती
तो अच्छा था
जो अपनी आग में
खुद को जला लेती
तो अच्छा था
अगर तू आबरू अपनी
लगा कर आग होठो से
किसी का घर जला देना
लगा कर आग होठो से
किसी का घर जला देना
किसी की जान जाना और
तेरा मुस्करा देना
की तेरा मुस्करा देना
किसी पर जान देकर
मुस्करा लेती तो अच्छा था
अगर तू आबरू अपनी
बचा लेती तो अच्छा था
जो अपनी आग में खुद को
जला लेती तो अच्छा था
अगर तू आबरू अपनी
सटी तो ाँ होती है तू
उनकी निशानी है
सटी तो ाँ होती है तू
उनकी निशानी है
न हरगिज भूल बेगैरत
तू हिन्दोस्तानी है
की तू हिन्दोस्तानी है
अगर तू शर्म को जेवर
बना लेती तो अच्छा था
अगर तू आबरू अपनी
बचा लेती तो अच्छा था
जो अपनी आग में खुद को
जला लेती तो अच्छा था
अगर तू आबरू अपनी.