संभल ऐ दिल, तड़पने और तड़पाने से क्या होगा? - The Indic Lyrics Database

संभल ऐ दिल, तड़पने और तड़पाने से क्या होगा?

गीतकार - साहिर लुधियानवी | गायक - आशा - रफी | संगीत - एन. दत्ता | फ़िल्म - साधना | वर्ष - 1958

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संभल ऐ दिल, तड़पने और तड़पाने से क्या होगा?
जहाँ बसना नहीं मुमकिन वहाँ जाने से क्या होगा ?
चले आओ कि अब मुँह फेर के जाने से क्या होगा?
जो तुम पर मिट चुका उस दिल को तरसाने से क्या होगा?
हमें संसार में अपना बनाना कौन चाहेगा?
ये मसले फूल सेजों पर सजाना कौन चाहेगा?
तमन्नाओं के झूठे ख़्वाब दिखलाने से क्या होगा?
तुम्हें देखा, तुम्हें चाहा, तुम्हें पूजा है इस दिल ने
जो सच पूछो तो पहली बार कुछ माँगा है इस दिल ने
समझते बुझते अनजान बन जाने से क्या होगा?
जिन्हें मिलती हैं खुशियाँ वो मुकद्दर और होते हैं
जो दिल में घर बनाते है वो दिलबर और होते हैं
उम्मीदों को खिलौने देके बहलाने से क्या होगा?
बहोत दिन से थी दिल में अब जबां तक बात पहुँची है
वहीं तक इसको रहने दो जहाँ तक बात पहुँची है
जो दिल की आख़िरी हद है वहाँ तक बात पहुँची है
जिसे खोना यक़ीनी है उसे पाने से क्या होगा?