कली के रूप में चली हो धूप में कहाँ - The Indic Lyrics Database

कली के रूप में चली हो धूप में कहाँ

गीतकार - मजरूह | गायक - रफ़ी, आशा | संगीत - एस डी बर्मन | फ़िल्म - नौ दो ग्याराह | वर्ष - 1957

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कली के रूप में चली हो धूप में कहाँ?
सुनो जी महरबाँ, होगे न तुम जहाँ, वहाँ
क्या है कहो जल्दी, कि हम तो हैं चल दी
अपने दिल के सहारे
अब न रुकेंगे तो दुखने लगेंगे
पाँव नाज़ुक तुम्हारे
राह में हो के गुम, जाओगे छुप के तुम, कहाँ?
सुनो जी महरबाँ, होगे न तुम जहाँ, वहाँ
चल न सकेंगे सम्भल न सकेंगे
हम तुम्हारी बला से
मिला न सहारा तो आओगी दुबारा
खिंच के मेरी सदा पे
छोड़ो दीवानापन, अजी जनाब मन कहाँ?
सुनो जी महरबाँ, होगे न तुम जहाँ, वहाँ
मानोगे न तुम भी तो ए लो चले हम भी
अब हम्ॅन न बुलाना
जाते हो तो जाओ, अदायें न दिखाओ
दिल न होगा निशाना
हवा पे बैठ के, चले हो ऐंठ के, कहाँ?
सुनो जी महरबाँ, होगे न तुम जहाँ, वहाँ