दिल जो ना कह सका - The Indic Lyrics Database

दिल जो ना कह सका

गीतकार - मजरूह सुल्तानपुरी | गायक - मोहम्मद रफ़ी | संगीत - रोशन | फ़िल्म - भीगी रात | वर्ष - 1965

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दिल जो न कह सका
वोही राज़-ए-दिल कहने की रात आई
नग़्मा सा कोई जाग उठा बदन में
झनकार की सी थरथरी है तन में
मुबारक तुम्हें किसी की लरजती सी बाहों में
रहने की रात आई ...
तौबा यह किसने अंजुमन सजा के
टुकड़े किए हैं गुंचा-ए-वफ़ा के
उछा लो गुलों के टुकड़े के रंगीन फिजाओं में
रहने की रात आई ...
चलिए मुबारक जश्न दोस्ती का
दामन तो थामा आपने किसी का
हमें तो ख़ुशी यही है, तुम्हें भी किसीको अपना
कहने की रात आई ...
साग़र उठाओ दिल का किसको ग़म है
आज दिल की क़ीमत जाम से भी कम है
पियो चाहे खून-ए-दिल हो, के पीते पिलाते ही
वोही राज-ए-दिल, कहने की रात आई