अजीब है ज़िन्दगी की मंज़िल - The Indic Lyrics Database

अजीब है ज़िन्दगी की मंज़िल

गीतकार - मजरूह | गायक - मजरूह | संगीत - अनिल बिस्वास | फ़िल्म - आकाश | वर्ष - 1953

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अजीब है ज़िन्दगी की मंज़िल
कहाँ चले थे कहाँ पे आए
न मुस्कुराए न रो सके दिल
कहाँ चले थे ...

न कोई रस्ता न कोई कारवाँ है
सितम की दीवार दरम्यां है
बढ़े तो मुश्क़िल रुके तो मुश्क़िल
कहाँ चले थे ...

चले थे उल्फ़त की बेख़ुदी में
उठा वह तूफ़ान ज़िन्दगी में
न कोई किश्ती न कोई साहिल
कहाँ चले थे ...$