चीन-ओ-अरब हमारा - The Indic Lyrics Database

चीन-ओ-अरब हमारा

गीतकार - साहिर लुधियानवी | गायक - मुकेश | संगीत - खय्याम | फ़िल्म - फ़िर सुबह होगी | वर्ष - 1958

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चीन-ओ-अरब हमारा, हिन्दोस्ताँ हमारा
रहने को घर नहीं है, सारा जहां हमारा
खोली भी छिन गई है, बेंचें भी छिन गई है
सड़कों पे घूमता है अब कारवाँ हमारा
जेबें है अपनी खाली क्यों देता वर्ना गाली
वो संतरी हमारा, वो पासबाँ हमारा
जितनी भी बिल्डिंगें थी सेठों ने बाँट ली हैं
फुटपाथ बम्बई के, हैं आशियाँ हमारा
सोने को हम कलंदर, आते हैं बोरीबंदर
हर एक कुली यहाँ का है राजदाँ हमारा
तालीम है अधूरी मिलती नहीं मजूरी
मालुम क्या किसी को दर्द-ए-निहाँ हमारा
पतला है हाल अपना, लेकिन लहू है गाढ़ा
फ़ौलाद से बना है हर नौजवाँ हमारा
मिल-जुल के इस वतन को ऐसा सजाएँगे हम
हैरत से मुँह तकेगा सारा जहां हमारा