अपने रुक पे रुक से जरा नकाब उथा दो मेरे हुजुर - The Indic Lyrics Database

अपने रुक पे रुक से जरा नकाब उथा दो मेरे हुजुर

गीतकार - हसरत जयपुरी | गायक - मोहम्मद रफ़ी | संगीत - शंकर, जयकिशन | फ़िल्म - मेरे हुज़ूर | वर्ष - 1968

View in Roman

अपने रुख पे निगाह करने दो
खूबसूरत गुनाह करने दो
रुख से पर्दा हटाओ जान-ए-हया
आज दिल को तबाह करने दोरुख से ज़रा नक़ाब उठा दो, मेरे हुज़ूर
जल्वा फिर एक बार दिखा दो, मेरे हुज़ूरतुम हमसफ़र मिले हो मुझे इस हयात में -२
मिल जाए चाँद जैसे कोई सूनी रात में
जागे तुम कहाँ ये बता दो, मेरे हुज़ूर
रुख से...हुस्न-ओ-जमाल आपका शीशे में देख कर -२
मदहोष हो चुका हूँ मैं जलवों की राह पर
ग़र हो सके तो होश में ला दो, मेरे हुज़ूर
रुख से...वो मर्मरी से हाथ वो महका हुआ बदन -२
टकराया मेरे दिल से, मुहब्बत का एक चमन
मेरे भी दिल का फूल खिला दो, मेरे हुज़ूर
रुख से...