न कंजर उठेगा जी चाहता है चुम लुउन - The Indic Lyrics Database

न कंजर उठेगा जी चाहता है चुम लुउन

गीतकार - साहिर लुधियानवी | गायक - आशा भोंसले, सुधा मल्होत्रा, बलबीर, बंदे हसन | संगीत - रोशन | फ़िल्म - | वर्ष - 1960

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आआआ ~~~~~ न खंजर उठेगा न तलवार तुमसे
आअ ये बाज़ू मेरे आज़माये हुए हैंऔर पहचानता हूँ खूब तुम्हारी नज़र को मैं
भै! जाने न दूँगा हाथ से दिल और जिगर को मैंदिल ऐसी शह नहीं है जो काबू में रह सके
भै! समझाऊँ किस तरह ये किसी बेखबर को मैंआयी है उनके चाँद से चहरे को चूम कर
भै! जी चाहता है चूम लूँ अपनी नज़र को मैनगो ज़ुल्म बेहिसाब किया इस निगह ने
रुसवा किया खराब किया इस निगह ने
इक काम लाजवाब किया इस निगह ने
जो तुझको इंतखाब किया इस निगाह ने
भै! जी चाहता है चूम लूँ अपनी नज़र को मैंइश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश फ़ितना
के लगाये न लगे और बुझाये न बने
अब तुम ही कहो कि क्या, जी चाहता हैवो सदा दूर दूर रहता है
नासिहा तू दुरुस्त कहता है
उसपे मरने से कुछ नहीं हासिल
आह भरने से कुछ नहीं हासिल
बेमुरव्वत है बेवफ़ा है वो
मेरे दुशमन का आशना है वो
अब उसे चोड़ना ही बेहतर है
ये भरम तोड़ना ही बेहतर है
मानते हैं तेरे नसीहत को
हाय पर क्या करें तबीयत को
भै! जी चाहता हैपिछले पहर जब ओस पड़े और ठण्डी पवन चले
बिरहा अगन मोरा तन मन फूँके सूनी सेज जले
सब सखियाँ चली पी को रिझाने
मोरे सजन हैं दूर ठिकाने
और मेरा भी जी चाहता हैक्यों आग पे मरते ये हम नहीं कह सकते
सूरत का सवाल है न सीरत की बात है
हम तुम पे मर मिटे ये तबीयत की बात है
भै! जी चाहता हैजी चाहता है चूम लूँ अपनी नज़र को मैं