बच्चे मन के सच्चे - The Indic Lyrics Database

बच्चे मन के सच्चे

गीतकार - साहिर लुधियानवी | गायक - लता मंगेशकर | संगीत - रवि | फ़िल्म - दो कलियाँ | वर्ष - 1968

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बच्चे मन के सच्चे, सारे जग की आँख के तारे
ये वो नन्हे फूल हैं जो भगवान को लगते प्यारे
खुद रूठें, खुद मन जाएँ, फिर हमजोली बन जाएँ
झगड़ा जिसके साथ करें, अगले ही पल फिर बात करें
इनको किसी से बैर नहीं, इनके लिए कोई ग़ैर नहीं
इनका भोलापन मिलता है सबको बाँह पसारे
इन्सां जब तक बच्चा है, तब तक समझो सच्चा है
ज्यों ज्यों उसकी उमर बढ़े, मन पर झूठ का मैल चढ़े
क्रोध बढ़े, नफ़रत घेरे, लालच की आदत घेरे
बचपन इन पापों से हटकर अपनी उमर गुज़ारे
तन कोमल मन सुन्दर है, बच्चे बड़ों से बेहतर हैं
इनमें छूत और छात नहीं, झूठी जात और पात नहीं
भाषा की तक़रार नहीं, मज़हब की दीवार नहीं
इनकी नज़रों में एक हैं मन्दिर मस्जिद गुरुद्वारे