सुनाऊँ क्या मैं ग़म अपना ज़ुबाँ तक ला नहीं सकता - The Indic Lyrics Database

सुनाऊँ क्या मैं ग़म अपना ज़ुबाँ तक ला नहीं सकता

गीतकार - मजरूह | गायक - मुकेश | संगीत - नौशाद | फ़िल्म - अंदाज़ | वर्ष - 1949

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सुनो सुनो बनवारी मोरी

सुनो सुनो बनवारी मोरी

दुनिया

दुनिया तेरी भई धुखियारी

सुनो सुनो बनवारी मोरी

सुनो सुनो

महलों में कोई रास रचाये

कोई दरदर ठोकर खाये

एक हँसे एक रोये

एक हँसे एक रोये जग में

कैसे तुझसे देखा जाये

ये तो कोई ना ए मुरारी

दुनिया तेरी भई धुखियारी

सुनो सुनो बनवारी मोरी

सुनो सुनो

इस धरती से सोना निकले

इस आकाश से अम्रत बरसे

फिर भी तेरी कुटनी दुनिया

रोटी के टुकड़ों को तरसे

भूखे हैं लाखों नरनारी

सुनो सुनो बनवारी मोरी

दुनिया तेरी भई धुखियारी

सुनो सुनो बनवारी मोरी

सुनो सुनो

दीनधरम के झगड़ों में ये

दुनिया तेरी मिटती जाये

धनधौलत के नाम पे भाई

भाई का ही लहू बहाये

हमें जगा दे राह बता दे

रख ले लाज हमारी

सुनो सुनो बनवारी मोरी

दुनिया तेरी भई धुखियारी

सुनो सुनो बनवारी मोरी

सुनो सुनो