गुलामी का घना अंधेरा रोको जुलमोन की आंधी को - The Indic Lyrics Database

गुलामी का घना अंधेरा रोको जुलमोन की आंधी को

गीतकार - समीर | गायक - कविता कृष्णमूर्ति, मोहम्मद अज़ीज़ | संगीत - लक्ष्मीकांत, प्यारेलाल | फ़िल्म - आज़ाद देश के गुलाम | वर्ष - 1990

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गुलामी का घना अँधेरा भारत में था छाया
इन्क़लाब का नारा गांधी नेहरू ने दोहराया
भगतसिंह आज़ाद ने अपने लहू की नदी बहा दी
जानें लुटा के वीरों ने आज़ादी हमें दिला दी
रोको ज़ुल्मों की आंधी को नफ़रत का लहू मत बहने दो
कम से कम प्यार की धरती पर तो प्यार को ज़िंदा रहने दो
रोको ज़ुल्मों की आंधी ...भूख गरीबी भारी चौराहों पर लुट गई नारी
घर में घुस कर गोली मारी पकड़ा गया न अत्याचारी
इन्सानी रूहों के अन्दर समा गया है हैवान दरिंदा
बेच रहा बेटी की अस्मत जला दिया दुल्हन को ज़िंदा
जिनकी कोख से पैदा हुए उसे इज़्ज़त के गहने दो
रोको ज़ुल्मों की आंधी ...कटे जिस्म को और कहां तक काटोगे बतलाओ
इक माँ को कितने हिस्सों में बांटोगे बतलाओ
कटे हुए टुकड़ों को गर तुम जोड़ सको तो जोड़ो
मार के पत्थर अपनी माँ का सर ऐसे न फोड़ो
अंग अंग ज़ख्मी है क्यों ज़ख्मों को सहने दो
रोको ज़ुल्मों की आंधी ...चीख रही है भारत माता गांधी गांधी वापस आओ
आज़ाद देश की मैं गुलाम आज़ादी मुझे दिलाओ
लिपट गई है तुमसे आकर अपनी भारत माता
बचा लो इसकी लाज मेरे भारत के भाग्य विधाता