राह के तालिब हैं आपनी भी क्या जिंदगी है निराली - The Indic Lyrics Database

राह के तालिब हैं आपनी भी क्या जिंदगी है निराली

गीतकार - शैलेंद्र सिंह | गायक - मुकेश | संगीत - शंकर, जयकिशन | फ़िल्म - आस का पंछी | वर्ष - 1961

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राह के तालिब हैं पर बेराह पड़ते हैं क़दम
देखिए क्या ढूँढते हैं और क्या पाते हैं हमअपनी भी क्या ज़िन्दगी है निराली
जहाँ गए ठुकराए गए जैसे बोतल खालीरंगीन वो ज़माना था सपना वो क्या सुहाना था
तब सुबह-ओ-शाम ख़ुशियों के जाम हर साँस एक तराना था
अब तो बस हर घड़ी दुख भरी बेबसी
आस की हर किरण अश्क़ बन बह गई
अपनी भी क्या ज़िन्दगी ...क्या नींद किसको सोना है अब सारी रात रोना है
दुखड़े बिछा के सब कुछ भूल के बस एक बार सोना है
ज़िन्दगी-ज़िन्दगी ओ मेरी लाड़ली
आ गले मिल है शायद ये रात आख़री
अपनी भी क्या ज़िन्दगी ...