हो आज मजहब कोई एक ऐसा नया: - The Indic Lyrics Database

हो आज मजहब कोई एक ऐसा नया:

गीतकार - नीरज | गायक - कविता कृष्णमूर्ति, विनोद राठौड़, रूप कुमार राठौड़, विजयता पंडित | संगीत - जतिन, ललित | फ़िल्म - सेंसर | वर्ष - 2001

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हो आज मज़हब कोई एक ऐसा नया
दोस्तों इस जहां में चलाया जाए
जिसमें इंसान इंसान बनके रहे आ
और गुलशन को गुलशन बनाया जाए
ओ आज मज़हब कोई ...आ जिससे बढ़कर कोई किताब नहीं
अरे जिसका मिलता कोई जवाब नहीं
उम्र भर चढ़ कर जो नहीं उतरे
वो नशा है मगर शराब नहीं
उसे प्यार ज़माना कहता है
उसका दीवाना रहता है
ये ऐसा है रंगीन नशा
ये जितना चढ़े उतना ही मज़ा
होंठों पे गुलाब यही तो है
आँखों में ख्वाब यही तो है
गालों पे शबाब यही तो है
घूंघट में हिज़ाब यही तो है
होंठों पे गुलाब आँखों में ख्वाब
गालों पे शबाब घूंघट में हिज़ाब
यही तो है यही तो है यही तो है यही तो है
इसको पाया मीरा ने इसको ही गाया कबीरा ने
ओ हर रूह की आवाज़ है ये
सबसे सुंदर साज़ है ये
जिस से रोशन पड़ोसी का आंगन रहे
वो दिया हर घर में जलाया जाए
जिसमें इंसान ...आ ये छाँव भी है और धूप भी है
रूप भी है और अनूप भी है
ये शबनम भी अंगार भी है
ये मेघ भी है मल्हार भी है
अरे इसमें दुनिया की जवानी है
ये आग के भीतर पानी है
ये रूह का एक सरोवर है
क़तरे में एक समंदर है
शायर का हसीं तसव्वुर है
संगीत का एक स्वय.म्वर है
ये सबको सब कुछ देता है
और बदले में बदले में बदले में
बस दिल लेता है दिल लेता है
दिल दिल दिल दिल दिल लेता है
इसका जो करम आज हो जाए
तो ये महफ़िल भी जन्नत सी हो जाए
जिसमें इंसान ...