वो है जिंदा जीना क्या जीवन से हार के - The Indic Lyrics Database

वो है जिंदा जीना क्या जीवन से हार के

गीतकार - समीर | गायक - सहगान, केके | संगीत - अनु मलिक | फ़िल्म - ॐ जय जगदीश | वर्ष - 2002

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वो है ज़िंदा जोश में जो आए
चाँद को भी वो ज़मीं पे लाए
वो भंवर में जो कभी घिर जाए
एक दिन का आदमी बन जाए
ये अभी जीता नहीं है यारों
मैं अभी हारा नहीं हूँ यारों
जीना क्या जीवन से हार के
जीना क्या ...जो हर साँस जी गया
मरने का उसको ग़म नहीं
कहती है धरा कहता है गगन
कहता है ये मन जिसमें है लगन
दिल टूटनें पे भी नग़में गाएं प्यार के
जीना क्या ...काली घनेरी रात में चाँदनी खिल जाएगी
तुझे अंधेरों में कहीं रोशनी मिल जाएगी
रहता नहीं सारी उमर साथी ये गर्दिश का खबर
देती है मंज़िल का पता काँटों भरी मुश्किल डगर
होगा कल क्या सोचना जो भी है बस आज है
कब कहाँ जाए बदल वक़्त का ये मिज़ाज है
क्या है सुख और दुःख है क्या चार दिन की बात है
दर्द में आराम है आँसू हँसी के साथ है
जीना क्या ...