अब के हम बिछाड़े तो शायाद कभी काबोन पुरुष मिलें - The Indic Lyrics Database

अब के हम बिछाड़े तो शायाद कभी काबोन पुरुष मिलें

गीतकार - अहमद फ़राज़ी | गायक - मेहदी हसन | संगीत - मेहदी हसन | फ़िल्म - महफ़िल-ए-ग़ज़ल (गैर फ़िल्म) | वर्ष - 1982

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अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़ाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुये फूल किताबों में मिलेंढूँढ उजड़े हुये लोगों में वफ़ा के मोती
ये ख़ज़ाने तुझे मुम्किन है ख़राबों में मिलेंतू ख़ुदा है न मेरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा
दोनों इन्साँ हैं तो क्यूँ इतने हिजाबों में मिलेंग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
नशा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलेंअब न वो मैं हूँ न वो तू है न वो माज़ी है 'फ़राज़'
जैसे दो साये तमन्ना के सराबों में मिलें