मेरे मेहबूब न जा, आज की रात न जा - The Indic Lyrics Database

मेरे मेहबूब न जा, आज की रात न जा

गीतकार - सबा अफगानी | गायक - सुमन कल्याणपुर | संगीत - जानी बाबू कव्वाल | फ़िल्म - नूर महल | वर्ष - 1965

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मेरे मेहबूब न जा, आज की रात न जा
होने वाली है सहर, थोड़ी देर और ठहर
देख कितना हसीन मौसम है
हर तरफ एक अजीब आलम है
ज़र्रे इस तरह आज निखरे हैं
जैसे तारें ज़मी पे बिखरे हैं
मैने काटें हैं इंतज़ार के दिन
तब कहीं आये हैं बहार के दिन
यूँ ना जा दिल की शम्मा गुल कर के
अब भी देखा नहीं है जी भर के
जब से ज़ुल्फ़ों की छांव पाई है
बेक़रारी को नींद आई है
इस क़यामत को यूँही सोने दे
रात ढ़लने दे, सुबह होने दे
इस तरह फ़ेरकर नज़र मुझ से
दूर जायेगा तू अगर मुझसे
चाँदनी से भी आग बरसेगी
शम्मा भी रोशनी को तरसेगी
धड़कनों में यही तराने हैं
तेरे रुकने के सौ बहाने हैं
मेरे दिल की जरा सदा सुन ले
प्यासी नज़रों की इल्तिजा सुन ले