मेरे मन की गंगा और तेरे मन की जमुना का - The Indic Lyrics Database

मेरे मन की गंगा और तेरे मन की जमुना का

गीतकार - शैलेंद्र | गायक - मुकेश | संगीत - शंकर जयकिशन | फ़िल्म - संगम | वर्ष - 1964

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मेरे मन की गंगा और तेरे मन की जमुना का
बोल राधा बोल संगम होगा के नहीं
कितनी सदियाँ बीत गईं हैं हाए तुझे समझाने में
मेरे जैसा धीरजवाला है कोई और जमाने में
दिल का बढ़ता ब़ोझ कभी कम होगा के नहीं
दो नदियों का मेल अगर इतना पावन कहलाता है
क्यो ना जहाँ दो दिल मिलते हैं, स्वर्ग वहाँ बस जाता है
हर मौसम है प्यार का मौसम होगा के नहीं
तेरी खातिर मैं तड़पा यूँ तरसे धरती सावन को
राधा राधा एक रटन है, साँस की आवन जावन को
पत्थर पिघले दिल तेरा नम होगा के नहीं