ज़िंदगी गुज़ारने को हुस्न गर नहीं शराब हि साही - The Indic Lyrics Database

ज़िंदगी गुज़ारने को हुस्न गर नहीं शराब हि साही

गीतकार - साहिर लुधियानवी | गायक - मोहम्मद रफ़ी | संगीत - रवि | फ़िल्म - एक महल हो सपनों का | वर्ष - 1975

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( ज़िंदगी गुज़ारने को साथी एक चाहिये
हुस्न गर नहीं शराब ही सही ) -२
हुस्न गर नहीं शराब ही सहीजबसे वो गये हैं अपनी ज़िंदगी में एक नया दौर आ गया है -२
उनसे कह दो अपने दिल में उनसे भी हसीन कोई और आ गया है
ज़र के आगे सर झुका के हुस्न बेवफ़ा हुआ
आज कोई हमसफ़र नहीं रहा तो क्या हुआ
मेरे हमसफ़र ज़नाब ही सही -२ज़िंदगी गुज़ारने को साथी एक चाहिये
हुस्न गर नहीं शराब ही सही -२इश्क़ और वफ़ा का सिर्फ़ नाम है जहाँ में काम कुछ भी नहीं है -२
दिल की चाहे कितनी अज़्मतें गिनाओ दिल का दाम कुछ भी नहीं है
आज मैंने तय किया है हर तिलिस्म तोड़ना
एक नये रास्ते पे ज़िंदगी को मोड़ना
अब ये फ़ैसला ख़राब ही सही -२ज़िंदगी गुज़ारने को साथी एक चाहिये
हुस्न गर नहीं शराब ही सही -२