वो है ज़रा खफा खफा - The Indic Lyrics Database

वो है ज़रा खफा खफा

गीतकार - मजरूह सुलतानपुरी | गायक - लता - रफी | संगीत - लक्ष्मीकांत प्यारेलाल | फ़िल्म - बहारें फिर भी आएगी | वर्ष - 1966

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वो है ज़रा ख़फ़ा ख़फ़ा
तो नैन यूँ चुराए हैं के हो, हो, हो ...
ना बोल दूँ तो क्या करूँ
वो हँस के यूँ बुलाए हैं के हो, हो, हो ...
हँस रही है चाँदनी
मचल के रो ना दूँ कही
ऐसे कोई रुठता नहीं
ये तेरा ख़याल है
करीब आ मेरे हँसी
मुझको तुझसे कुछ गिला नहीं
बातें यूँ बनाये हैं के हो, हो, हो ...
न बोल दूँ तो क्या करूँ
वो हँस के यूँ बुलाए हैं के हो, हो, हो ...
फूल को महक मिले
ये रात रंग में ढले
मुझपे तेरी ज़ुल्फ़ गर खुले
तुम ही मेरे संग हो
गगन के छाँव के तले
ये रुत यूँही भोर तक चले
प्यार यूँ जताये हैं के हो, हो, हो ...
न बोल दूँ तो क्या करूँ
वो हँस के यूँ बुलाये हैं के हो, हो, हो ...
ऐसे मत सताईये
ज़रा तरस तो खाईये
दिल की धड़कन मत जगाईये
कुछ नहीं कहूँगा मैं
ना अंखड़ियाँ झुकाईये
सर को काँधे से उठाईये
ऐसे नींद आए है के हो, हो, हो ...
वो हैं ज़रा खफा खफा ...