हरी हरी वसुंधरा पे नीला नीला ये गगन - The Indic Lyrics Database

हरी हरी वसुंधरा पे नीला नीला ये गगन

गीतकार - भरत व्यास | गायक - मुकेश | संगीत - सतीश भाटिया | फ़िल्म - बूंद जो बन गई मोती | वर्ष - 1967

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हरी हरी वसुंधरा पे नीला नीला ये गगन
के जिस पे बादलों की पालकी उड़ा रहा पवन
दिशायें देखो रंगभरी, चमक रही उमंगभरी
ये किस ने फूल फूल पे किया सिंगार है
ये कौन चित्रकार है, ये कौन चित्रकार
ये कौन चित्रकार है ...
तपस्वीयों सी हैं अटल ये पर्वतों की चोटियाँ
ये सर्प सी घूमेरदार, घेरदार घाटियाँ
ध्वजा से ये खड़े हुये हैं वृक्ष देवदार के
गलिचे ये गुलाब के, बगीचे ये बहार के
ये किस कवी की कल्पना का चमत्कार है
ये कौन चित्रकार है ...
कुदरत की इस पवित्रता को तुम निहार लो
इस के गुणों को अपने मन में तुम उतार लो
चमकालो आज लालिमा अपने ललाट की
कण कण से झाँकती तुम्हें छबि विराट की
अपनी तो आँख एक है, उस की हज़ार हैं
ये कौन चित्रकार है ...