वो ज़िंदगी जो थी अब तक तेरी पनाहों में - The Indic Lyrics Database

वो ज़िंदगी जो थी अब तक तेरी पनाहों में

गीतकार - साहिर लुधियानवी | गायक - लता मंगेशकर | संगीत - मदन मोहन | फ़िल्म - संजोग | वर्ष - 1961

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वो ज़िन्दगी जो थी अब तक तेरी पनाहों में
चली है आज भटकने उदास राहों में
तमाम उम्र के रिश्ते घडी में ख़ाक हुए
न हम हैं दिल में किसी के न हैं निग़ाहों में
ये आज जान लिया अपनी कमनसीबी ने
कि बेगुनाही भी शामिल हुई गुनाहों में
किसी को अपनी जरूरत न हो क्या कीजे
निकल पड़े हैं सिमटने क़ज़ा की बाँहों में