बार बार तुम सोच रहई हो चार दिनों की चंदानी - The Indic Lyrics Database

बार बार तुम सोच रहई हो चार दिनों की चंदानी

गीतकार - प्रदीप | गायक - लता मंगेशकर, शंकर दासगुप्ता | संगीत - अनिल बिस्वास | फ़िल्म - गर्ल्स स्कूल | वर्ष - 1949

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श: बार बार तुम सोच रही हो
मन में कौन सी बात, मन में कौन सी बात
ल: चार दिनों की चाँदनी है फिर अँधियारी रातश: आज तुम्हारे चेहरे की रंगत बोलो क्यों बदली है
ल: मुझे भी ख़ुद मालूम नहीं
कि मेरी कश्ती किधर चली है
श: दूर ओ देखो झिल-मिल झिल-मिल
चमक रही है अपनी मंज़िल
उस मंज़िल की ओर सजनिया
चलो चलें एक साथल: कितना है आसान जगत में मन के महल बनाना
पर कितना मुश्क़िल है अपने हाथ से उन्हें गिराना
कितना है आसान जगत में मन के महल बनाना
पहले एक धुँधली सी आशा, फिर मजबूरी और निराशा
श: प्रेम के पथ पर हर प्रेमी को मिली यही सौग़ात