जो हमपे गुजराती है तनाहा किसे समाजें - The Indic Lyrics Database

जो हमपे गुजराती है तनाहा किसे समाजें

गीतकार - मजरूह सुल्तानपुरी | गायक - सुमन कल्याणपुर | संगीत - खैय्याम | फ़िल्म - मोहब्बत इसे कहते हैं | वर्ष - 1965

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जो हम पे गुज़रती है तनहा किसे समझाएँ
तुम भी तो नहीं मिलते, जाएँ तो किधर जाएँ ...समझा है न समझेगा इस ग़म को यहाँ कोई
बेदर्दों की बस्ती है, हमदर्द कहाँ कोई
जो सिर्फ़ तुम्हारा है, वो दिल किसे दिखलाएँ
जो हम पे गुज़रती है ...जब जान-ए-वफ़ा तेरी फ़ुरक़त ना सताएगी
वो सुबह कब आएगी, वो शाम कब आएगी
कब तक दिल-ए-नादाँ को हम वादों से बहलाएँ
तुम भी तो नहीं मिलते ...आजा कि मुहब्बत की मिटने को हैं तसवीरें
पहरे हैं निगाहों पे और पाँव में ज़ंजीरें
बस में ही नहीं वरना हम उड़के चले आएँ
जो हम पे गुज़रती है ...