उधर बालों में कंघी हो रही है ख़म निकलता है - The Indic Lyrics Database

उधर बालों में कंघी हो रही है ख़म निकलता है

गीतकार - नक्षबी | गायक - तलत महमूद | संगीत - नशद | फ़िल्म - जिंदगी या तूफान | वर्ष - 1958

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उधर बालों में कंघी हो रही है ख़म निकलता है
इधर रग रग से खिंच खिंच कर हमारा दम निकलता हैज़ुल्फ़ों की सुनहरी छाँव तले
इक आग लगी दो दीप जले
जब पहली नज़र के तीर चले
मत पूछ कि दिल पर क्या गुज़रीजब प्यार हुए दो नैन मिले
जब आयी बहार और फूल खिले
जब बात हुई और लब न हिले
मत पूछ कि दिल पर क्या गुज़री ...इतना सा है दिल का अफ़साना
अपना न हुआ इक बेगाना
नज़रें तो मिली और दिल न मिले
कुछ उनसे हमें शिक़वे न गिले
क्या खूब मिले उल्फ़त के सिले
मत पूछ कि दिल पर क्या गुज़री ...रह रह के तड़पना घबराना
हर बात पे दिल भर भर आना
आँसू भी बहे सीना भी जले
अरमान अजब काँटों में ढले
इस प्यार से हम बेप्यार भले
मत पूछ कि दिल पर क्या गुज़री ...