दिल ढ़ूँढ़ता है फिर वही फुरसत के रात दिन - The Indic Lyrics Database

दिल ढ़ूँढ़ता है फिर वही फुरसत के रात दिन

गीतकार - गुलजार | गायक - लता - भूपेंद्र | संगीत - मदन मोहन | फ़िल्म - मौसम | वर्ष - 1975

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दिल ढूँढता है फिर वही फुर्सत के रात दिन
बैठे रहें तसव्वुर-ए-जानां किए हुए
जाड़ों की नर्म धूप और आँगन में लेट कर
आँखों पे खींच कर तेरे दामन के साए को
औन्धे पड़े रहें कभी करवट लिए हुए
या गर्मियों की रात जो पुरवाईयाँ चलें
ठंडी सफ़ेद चादरों पे जागें देर तक
तारों को देखते रहें छत पर पड़े हुए
बर्फ़ीली सर्दियों में किसी भी पहाड़ पर
वादी में गूंजती हुई खामोशियाँ सुने
आँखों में भीगे भीगे से लम्हे लिए हुए
भूपेंद्र
(दिल ढूँढता है फिर वही फुर्सत के रात दिन
बैठे रहें तसव्वुर-ए-जानां किए हुए
जाड़ों की नर्म धूप और आँगन में लेट कर
आँखों पे खींच कर तेरे आँचल के साए को
औन्धे पड़े रहें कभी करवट लिए हुए
या गर्मियों की रात जो पुरवाईयाँ चलें
ठंडी सफ़ेद चादरों पे जागें देर तक
तारों को देखते रहें छत पर पड़े हुए
बर्फ़ीली सर्दियों में किसी भी पहाड़ पर
वादी में गूंजती हुई खामोशियाँ सुने
आँखों में भीगे भीगे से लम्हे लिए हुए)