एक दिन राधा ने बंसुरिया के बांस की थि - The Indic Lyrics Database

एक दिन राधा ने बंसुरिया के बांस की थि

गीतकार - | गायक - जहांआरा कजान | संगीत - ब्रजलाल वर्मा | फ़िल्म - ज़ेहरी साँप | वर्ष - 1933

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महाराज सुनिए
एक कहानी

एक दिन राधा ने
बंसुरिया नान्दलाल की
चुपके से ली चुरा
घर लायी उठा
और क्रोध में आ बोली
की निगोड़ी सच बतला
क्या मन्तर है
क्या जादू है वो
मोह रखा है जिस’से
मोहन को
हँसकर बंसुरिया बोली यूं
ठहरो सजनी
बतलाती हूँ

इक बांस की ठी पतली सी नाली
इक बांस की ठी पतली सी नाली
जंगल में उगी ी
जंगल में पली
जंगल में उगी ी
जंगल में पली
तक़दीर मगर
कुछ अच्छी थी
तक़दीर मगर
कुछ अच्छी थी

मधुसूदन के मैं साथ ली
मधुसूदन के मैं साथ ली
सजनी जो कटा हर अंग मेरा
कुछ और ही निकला रंग मेरा
सजनी जो कटा हर अंग मेरा
कुछ और ही निकला रंग मेरा
मैं प्रेम को समझी थी आसान
मैं प्रेम को समझी थी आसान
सुन कर होगी तुम भी हैरान
सुन कर होगी तुम भी हैरान

छेदों से मेरा
सीना है भरा
छेदों से मेरा
सीना है भरा ा
हाथ लगा कर देख ज़रा
छेदों से भरा
सीना है मेरा
ा हाथ लगा कर देख ज़रा
अब तन क्या है इक तां सखि
अब तन क्या है इक तां सखि
प्रीतम के श्वास हैं जान सखि
प्रीतम के श्वास हैं जान सखि
प्रीतम के ऐ ऐ
श्वाआस हैं ऐ ऐ
जाहां सखी.