भितर भीतर खाए चलो बहार शोर - The Indic Lyrics Database

भितर भीतर खाए चलो बहार शोर

गीतकार - कैफ़ी आज़मी | गायक - मुकेश, महेंद्र कपूर | संगीत - खैय्याम | फ़िल्म - | वर्ष - 1974

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मु : भीतर-भीतर खाए चलो बाहर शोर मचाए चलो
म : भेद कौन खोलेगा मुँह से कौन बोलेगा
दो : भीतर-भीतर खाए ...मु : जनता भोली-भाली है पेट भी जेब भी खाली है
नारों से गरमा दो लहू वादों से बहलाए चलो
दो : भीतर-भीतर खाए ...मु : बढ़ती जाए मंहगाई घटती जाए है कमाई
म : चीज़ों के दाम बढ़ाए चलो इन्सां का भाव गिराए चलो
दो : भीतर-भीतर खाए ...म : हाथों में कुछ नोट लो फिर चाहो जितने वोट लो
मु : खोटे से खोटा काम करो बापू को नीलाम करो
दो : भीतर-भीतर खाए ...असरानी : अरे बापू की तस्वीर है ये
म : तेरे बाप की क्या जागीर है ये
बापू-बापू करते रहो
मु : ज़हर दिलों में भरते रहो
म : बस्ती-बस्ती आग लगे
मु : हर इन्सान इक नाग लगे
प्रान्त-प्रान्त को तंग करे
म : भाषा से भाषा जंग करे
मु : कोई यहाँ मलियाली
म : कोई यहाँ बंगाली
मु : गुजराती है कोई यहाँ
म : पंजाबी है कोई यहाँ
मु : कोई है मराठा और वो तमिल
म : आपस में यारी है मुश्किल
दो : सबको चाहिए अपनी ज़मीं हिन्दुस्तानी कोई नहीं
को : हिन्दुस्तानी कोई नहीं -२मु : देश कहाँ अब देश रहा
म : देश कहाँ अब देश रहा
मु : देश तो सीमाओं में बंटा
म : और भी टुकड़े उड़ाए चलो
दो : कुर्सी अपनी बचाए चलो
भीतर-भीतर खाए ...