गीतकार - मुजफ्फर वारसी | गायक - गुलाम अली | संगीत - | फ़िल्म - नगमा-ए-दिल (गैर-फ़िल्म) | वर्ष - 1991
View in Roman '>देखा इधर उधर तो ये ठोकर लगी मुझे
अपनी ही चाप राह का पत्थर लगी मुझेभड़का हुआ था शोला-ए-एहसास इस क़दर
सहरा की धूप साये से बेहतर लगी मुझेतक़सीम हो गया हूँ मैं ख़ैरात की तरह
दुनिया किसी फ़क़ीर की चादर लगी मुझेयूँ दिल बुझा के ख़ून से उठने लगा धुवाँ
उठते धुवें की लौ तेरा पैकर लगी मुझेपथरा चला है जिस्म भी आँखों के साथ साथ
वो ज़ल्ब-ए-इंतज़ार 'मुज़फ़्फ़र' लगी मुझे