तुम इश्क की महफिल हो इक बार फिर कहो जरा - The Indic Lyrics Database

तुम इश्क की महफिल हो इक बार फिर कहो जरा

गीतकार - खुमार बाराबंकवी | गायक - मोहम्मद रफ़ी, आशा भोंसले | संगीत - नौशाद | फ़िल्म - साज़ और आवाज़ | वर्ष - 1966

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र : तुम इश्क़ की महफ़िल हो तुम हुस्न का जलवा हो
या साज-ए-मोहब्बत पर छेड़ा हुआ नग़मा हो
आ : इक बार फिर कहो ज़रा
को : इक बार फिर कहो ज़राआ : शाईर हो मुसव्विर हो मालूम नहीं क्या हो
लगता है मुझे ऐसा तुम मेरी तमन्ना हो
र : इक बार फिर कहो ज़रा
को : इक बार फिर कहो ज़रार : ज़ुल्फ़ें हैं घटा जैसी चेहरा है कमल जैसा
( मरमर का बदन प्यारा ) -२ है ताजमहल जैसा
जैसे तुम्हें क़ुदरत ने हाथों से बनाया हो -२
तुम इश्क़ की महफ़िल ...
आ : इक बार फिर कहो ज़रा
को : इक बार फिर कहो ज़राआ : तुम क्या मिले उल्फ़त की तस्वीर नज़र आई
मुझको मेरे ख़्वाबों की ताबीर नज़र आई
भरता नहीं दिल जिससे तुम ऐसा नज़ारा हो -२
शाईर हो मुसव्विर हो ...
र : इक बार फिर कहो ज़रा
को : इक बार फिर कहो ज़रा