एक फूल हंस के जिने का ढांग सिखाए जा - The Indic Lyrics Database

एक फूल हंस के जिने का ढांग सिखाए जा

गीतकार - डी एन मधोकी | गायक - के एल सहगल | संगीत - खेमचंद प्रकाश | फ़िल्म - परवाना | वर्ष - 1947

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एक फूल हंस के बाग़ में कलियाँ खिलाये जा
शबनम के अश्क अपनी हँसी में छुपाये जाजीने का ढंग सिखाये जा
काँटों की नोक पर खड़ा मुस्कुराये जा
जीने का ढंग सिखाये जा ...भँवरे ने तेरे कानों में कुछ गुनगुना दिया
ये कह के राज़-ए-ज़िंदगी तुझको बता दिया
रोते हुए जहान में तू मुस्कुराये जा, तू मुस्कुराये जा
जीने का ढंग सिखाये जा ...बुलबुल की सदाओं में भी पैग़ाम यही है
कोयल की पीहकू सुबह शाम यही है
ओ हँसते हुए फूल तेरे हुस्न पे सदक़े
पतझड़ में क्या करे कोई इतना बताये जा
जीने का ढंग सिखाये जा ...