दुआ क्या रंग लाई है नशीली रात आई हैं - The Indic Lyrics Database

दुआ क्या रंग लाई है नशीली रात आई हैं

गीतकार - अंजान | गायक - कविता कृष्णमूर्ति, मोहम्मद अज़ीज़ | संगीत - बप्पी लाहिड़ी | फ़िल्म - पाप का अंत | वर्ष - 1989

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दुआ क्या रंग लाई है नशीली रात आई है
नशा क्या दिल पे छाया है दुहाई है दुहाईदीवाने दिल के दीवाने आए हैं जान लुटाने
अंजाम क्या होगा तेरा जान-ए-तमन्ना तुझे ये नहीं है पता
दीवाने दिल केअंजाम से डरना कैसा हो जाएगा आज तेरा मेरा फ़ैसला
दीवाने दिल केबड़ा रंगीन जहां है क़यामत का ये समां है
दिल में आग लगी है उठा महफ़िल में धुआं है
अभी तो जाम ढलेंगे अभी तो दौर चलेंगे
नशे के रंग घुलेंगे दिलों के राज़ खुलेंगे
यहां किसे किसने लूटा दिया किसने यहां धोखा
रुख-ए-रोशन से ये पर्दा जो उठा दूं मैं तो क्या होगा
चली आई है कहां से तू यहां से बच के निकल जा
लुटे न मुफ़्त में मेरी जां अभी है वक़्त स.म्भल जा
किसमें यहां कितना दम है
देखूं रे देखूं रे देखूं रे मैं भी ज़रा
दीवाने दिल के ...तेरे सदके तेरे क़ुर्बां तेरे जलवे हैं या तूफ़ां
कहां आके कहां रख दी निशाने पर यहां ये जां
अरे ये जां अरे ये जां
अभी पर्दे से है पर्दा राज़ राज़ अभी है
हथेली पर ये जां लेके ये सारी उम्र कटी है
उठा पर्दा दिखा जलवा ज़रा देखूं तो तू क्या है
सुलगते तेरे सीने में दबी ये आरज़ू क्या है
क्यों झूठी ज़िद पे अड़ा है मेरे पीछे क्यों पड़ा है
ये राहें शोलों से भरी हैं जहां इस वक़्त खड़ा है
ज़िद ये तुझे सूझी क्या है
जानूं रे जानूं मैं जानूं मैं इरादा तेरा
दीवाने दिल के ...मैं गज़ब हूँ मैं बला हूँ मुझे न हाथ लगाना
नहीं मुमकिन मेरे दिल को खिलौना ऐसे बनाना
गज़ब हो या बला कोई यहां कठपुतली बन जाए
मेरी महफ़िल में आके हुस्न कोई बच न जाए
ये माना तेरी महफ़िल में तेरी मनमानी चलती है
फूंक दे सारी महफ़िल को शमां जब ऐसी जलती है
अगर हमसे उलझेगा तू याद रख तू पछताएगा
उड़ेंगे फिर ऐसे शोले खाक़ में तू मिल जाएगा
खुलेंगी जब तेरी आँखें तुझे रस्ते पे लाएंगे
काम जो करने आए हैं काम वो कर के जाएंगे
करूंगा फ़ैसला जो मैं यहां वो फ़ैसला होगा
मुझे मालूम है किसका यहां अंजाम क्या होगा
जिसे न मौत का डर हो वो अपनी जान पर खेले
घड़ी है आखरी तेरी ख़ुदा का नाम तू ले ले
जान रहे चाहे जाए कर जाएंगे आज हम भी तेरा फ़ैसला
दीवाने दिल के ...