न मंज़िल है न मंज़िल का निशाँ है - The Indic Lyrics Database

न मंज़िल है न मंज़िल का निशाँ है

गीतकार - प्रेम धवन | गायक - तलत महमूद, आशा, मुबारक बेगम | संगीत - खय्याम | फ़िल्म - तातर का चोर | वर्ष - 1955

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क़फ़स में डाला मुझे अपने राज़दारों ने
मेरे चमन को है लूटा मेरी बहारों ने
ख़ुदा गवाह है सनम मेरी बेगुनाही का
दिया फ़रेब ये तक़दीर की सितारों ने
न मंज़िल है न मंज़िल का निशाँ है
मेरी भी दास्ताँ क्या दास्ताँ है
न देना भूल कर भी दिल किसी को
मुहब्बत इस ज़माने में कहाँ है
कहो तो छीर कर दिल को दिखा दूँ
कहाँ तक ग़म तेरा दिल में निहाँ है
वफ़ा क्या है ये समझाएँगे इक दिन
तेरी उल्फ़त पे मिट जाएँगे इक दिन
के मिटकर ही मुहब्बत जाविदाँ है
न मंज़िल है न मंज़िल का निशाँ है
मेरी भी दास्ताँ क्या दास्ताँ है