फ़ैली हुई हैं सपनों की बाहें - The Indic Lyrics Database

फ़ैली हुई हैं सपनों की बाहें

गीतकार - साहिर लुधियानवी | गायक - लता मंगेशकर | संगीत - सचिन देव बर्मन | फ़िल्म - हाउस नंबर 44 | वर्ष - 1955

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फ़ैली हुई हैं सपनों की बाहें
आजा चल दे कहीं दूर
वही मेरी मंज़िल, वही तेरी राहें
आजा चल दें कहीं दूर
ऊदी घटा के साए तले छूप जाएं
धुंदली फ़िज़ा में कुछ खोएं, कुछ पाएं
साँसों की लयपर कोई ऐसी धुन गाएं
दे दे जो दिल को दिल की पनाहें
आजा चल दे कहीं दूर
झूला धनक का धीरे-धीरे हम झूलें
अंबर तो क्या है तारों के भी लब छू लें
मस्ती में झूमें और सभी ग़म भूलें
देखे न पीछे मुड़ के निगाहें
आजा चल दे कहीं दूर