माई री, मैं कासे कहूँ पीर अपने जिया की - The Indic Lyrics Database

माई री, मैं कासे कहूँ पीर अपने जिया की

गीतकार - मजरूह सुल्तानपुरी | गायक - लता मंगेशकर | संगीत - मदन मोहन | फ़िल्म - दस्तक | वर्ष - 1970

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न तड़पने की इज़ाज़त है ना फ़रियाद की है
घुट के मर जाऊँ ये मर्ज़ी मेरी सय्याद की है
माई री, मैं कासे कहूँ पीर अपने जिया की
माई री …
ओस नयन की उनके मेरी लगी को बुझाए ना
तन मन भिगो दे आके ऐसी घटा कोई छाए ना
मोहे बहा ले जाए ऐसी लहर कोई आए ना
ओस नयन की उनके मेरी लगी को बुझाए ना
पड़ी नदिया के किनारे मैं प्यासी, माई री
पी की डगर में बैठे मैला हुआ री मेरा आचरा
मुखड़ा है फीका-फीका, नैनो में सोहे नहीं काज़रा
कोई जो देखे मैया, प्रीत का वासे कहु माजरा
पी की डगर में बैठे मैला हुआ री मेरा आचरा
लट में पड़ी कैसी बिरहा की माटी, माई री
आँखों में चलते फिरते रोज मिले पिया बावरे
बैयाँ की छैयाँ आके मिलते नहीं कभी सांवरे
दुःख ये मिलन का लेके काह करूँ, कहाँ जाऊँ रे
आँखो में चलते फिरते रोज़ मिले पिया बावारे
पाकर भी नहीं उनको मैं पाती, माई री