बगावत का जय जननी जय भारत मान - The Indic Lyrics Database

बगावत का जय जननी जय भारत मान

गीतकार - इन्दीवर | गायक - मुकेश | संगीत - कल्याणजी, आनंदजी | फ़िल्म - प्यासे पंछी | वर्ष - 1961

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बगावत का खुला पैगाम
देता हूँ जवानों को
अरे उठो उठ कर मिटा दो
तुम ग़ुलामी के निशानों को

जय जननी जय भारत माँ
जय जननी जय भारत माँ
जय जननी जय भारत माँ
उठो गागा की गोदी से
उठे सतलुज के साहिल से

उठो दक्खन के सीने से
उठो बगाल के दिल से
निकालो अपनी धरती से
बिदेशी हुक्मरानों को
उठो उठ कर मिटा दो
तुम ग़ुलामी के निशानों को
जय जननी जय भारत माँ
जय जननी जय भारत माँ
जय जननी जय भारत माँ

ख़िज़ाँ की क़ैद से उजड़ा
चमन आज़ाद कराना है
हमें अपनी ज़मी अपना
वतन आज़ाद कराना है
जो गद्दारी सिखाये
खींच लो उनकी ज़बानो को

उठो उठ कर मिटा दो
तुम ग़ुलामी के निशानों को
जय जननी जय भारत माँ
जय जननी जय भारत माँ
जय जननी जय भारत माँ

ये सौदागर जो इस धरती
पे कब्ज़ा कर के बैठे है
हमारे खून से अपने

खजाने भर के बैठे है
इन्हे कह दो के अब वापस
करे सारे ख़ज़ानों को
उठो उठ कर मिटा दो
तुम ग़ुलामी के निशानों को

जय जननी जय भारत माँ
जय जननी जय भारत माँ
जय जननी जय भारत माँ
जो इन खेतो का दाना
दुश्मनो के काम आना है

जो इन कानो का सोना
अजनबी देशो को जाना है
तो फूंको सारी फसलों को
जला दो साड़ी कानो को
उठो उठ कर मिटा दो
तुम ग़ुलामी के निशानों को
जय जननी जय भारत माँ
जय जननी जय भारत माँ
जय जननी जय भारत माँ

बहुत झेली गुलामी की
बलाये अब न झेलेंगे
बहुत झेली गुलामी की
बलाये अब न झेलेंगे
चढेगे फांसियों पर
गोलियों को हँस के झेलेगे
चढेगे फांसियों पर
गोलियों को हँस के झेलेगे

उन्ही पर मोड़ देंगे
उनकी तोपों के दहानो को
उन्ही पर मोड़ देंगे
उनकी तोपों के दहानो को
उठो उठ कर मिटा दो
तुम ग़ुलामी के निशानों को.