उधर तुम हसीं हो, इधर दिल जवां है - The Indic Lyrics Database

उधर तुम हसीं हो, इधर दिल जवां है

गीतकार - गुलजार | गायक - गीता दत्त - रफी | संगीत - ओ. पी. नय्यर | फ़िल्म - दिल पडोसी है | वर्ष - 1987

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उधर तुम हसीं हो, इधर दिल जवां है
ये रंगीन रातों की एक दास्तां है
ये कैसा है नग़्मा, ये क्या दास्तां है
बता ऐ मोहब्बत मेरा दिल कहाँ है
मेरे घर में आई हुई है बहार
क़यामत है फिर भी करूँ इंतज़ार
मोहब्बत कुछ ऐसी सदा दे रही है
के खुद रात अंगड़ाईयाँ ले रही है
जिधर देखती हूँ नज़ारा जवां है
सुलगती हैं तारों की परछाईयाँ
बुरी हैं मोहब्बत की तनहाईयाँ
महकने लगा मेरी ज़ुल्फों में कोई
लगी जागने धड़कनें सोई सोई
मेरी हर नज़र आज दिल की ज़ुबां है
तरसता हूँ मैं ऐसे दिलदार को
जो दिल में बसा ले मेरे प्यार को
तेरे ख़्वाब हैं मेरी रातों पे छाये
मेरे दिल पे हैं तेरी पलकों के साये
के मेरे लबों पर तेरी दास्तां है