उड़े, खुले आसमां में ख्वाबों के परिंदे - The Indic Lyrics Database

उड़े, खुले आसमां में ख्वाबों के परिंदे

गीतकार - मजरूह सुल्तानपुरी | गायक - एलिसा मेंडोसा - मोहित चौहान | संगीत - शंकर - एहसान - लॉय | फ़िल्म - मिस्टर अँड मिसेस ५५ | वर्ष - 1955

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उड़े, खुले आसमां में ख़्वाबों के परिंदे
उड़े, दिल के जहां में ख़्वाबों के परिंदे
ओ हो, क्या पता, जायेंगे कहाँ
खुले हैं जो पल, कहे ये नज़र
लगता है अब हैं जागे हम
फ़िक्रें जो थी, पीछे रह गयी
निकले उनसे आगे हम
हवा में बह रही है ज़िंदगी
ये हम से कह रही है ज़िंदगी
ओ हो, अब तो, जो भी हो सो हो
उड़े, खुले आसमां में ख़्वाबों के परिंदे
उड़े, दिल के जहां में ख़्वाबों के परिंदे
ओ हो, क्या पता, जायेंगे कहाँ
किसी ने छुआ तो ये हुआ
फिरते है महके महके हम
हुयी हैं कई बातें नई
जब है ऐसे बहके हम
हुआ है यूँ के दिल पिघल गये
बस एक पल में हम बदल गये
ओ हो, अब तो, जो भी हो सो हो
रोशनी मिली, अब राह में है इक दिलकशी सी बरसी
हर ख़ुशी मिली, अब ज़िंदगी पे है ज़िंदगी सी बरसी
अब जीना हमने सीखा है
याद है कल, आया था वो पल
जिसमें जादू ऐसा था
हम हो गये जैसे नये
वो पल जाने कैसा था
कहे यह दिल के जा उधर ही तू
जहाँ भी लेके जाये आरज़ू
ओ हो, अब तो, जो भी हो सो हो