शम्मा जलती है जले हाय हाय ये निगाहें - The Indic Lyrics Database

शम्मा जलती है जले हाय हाय ये निगाहें

गीतकार - मजरूह सुल्तानपुरी | गायक - किशोर कुमार | संगीत - एस डी बर्मन | फ़िल्म - पेइंग अतिथि | वर्ष - 1957

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शम्मा जलती है जले, रात ढलती है ढले
छोड़ के ऐसी महफ़िल, हम नहीं जाने वालेहाय
हाय हाय हाय ये निगाहें
कर दे शराबी जिसे चाहें जिसे चाहें
मैं तो भूल गया राहें
हाय हाय हाय ये निगाहें ...रात हसीं है जवाँ हैं नज़ारे
झूम चले हम दिल के सहारे
आज कोई हमको न पुकारे
ए हे हे हे
तोबा तोबा, ये निगाहें
मय की बोतल जैसी बाहें
हाय!
हाय हाय हाय ये निगाहें ...यूँ जो समा बहका बहका हो
हम भी ज़रा बहके तो मज़ा हो
ए हे हे हे हे हुँ हुँ हुँ
यूँ जो समा बहका बहका हो
हम भी ज़रा बहके तो मज़ा हो
आँख पिये और दिल को नशा हो
रोकती हैं मेरी राहें
मय की बोतल जैसी बाहें
हाय!
हाय हाय हाय ये निगाहें ...