कोई हसीना जब रूठ जाती है - The Indic Lyrics Database

कोई हसीना जब रूठ जाती है

गीतकार - आनंद बख्शी | गायक - किशोर कुमार | संगीत - राहुल देव बर्मन | फ़िल्म - शोले | वर्ष - 1975

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कोई हसीन जब रूठ जाती है तो
और भी हसीन हो जाती है
कोई हसीन जब रूठ जाती है तो
और भी हसीन हो जाती है

टेसन से गाड़ी जब छुट जाती है तो
एक दो तीन हो जाती है

हाथों में चाबुख, होंठों पे गालियाँ
हाथों में चाबुख, होंठों पे गालियाँ
बड़ी नखरे वालियाँ होती है टांगे वालियाँ

कोई टांगे वाली जब रूठ जाती है तो, है तो, है तो
और नमकीन हो जाती है

कोई हसीना जब रूठ जाती है तो
और भी हसीन हो जाती है
जुल्फों में छैय्या, मुखड़े पे धूप है
हे जुल्फों में छैय्या, मुखड़े पे धूप है
बड़ा मज़दार गोरिये यह तेरा रंग रूप है

डोर से पतंग जब टूट जाती है तो, है तो, है तो
रुख़ रंगीन हो जाती है

(कोई हसीना जब रूठ जाती है तो
और भी हसीन हो जाती है
टेसान से गाड़ी जब छुट जाती है तो
एक दो तीन हो जाती है) x3