हर तन में कवि कवि रे ओ कवि रे - The Indic Lyrics Database

हर तन में कवि कवि रे ओ कवि रे

गीतकार - जान निसार अख्तर | गायक - राजेंद्र मेहता | संगीत - जयदेव | फ़िल्म - परिणय | वर्ष - 1974

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हर तन में कवि, हर मन में कवि
जब ग़म के दीप जले लगते
(ऐसे में बता तुझे हाय रे हाय क्यों
प्रीत के गीत भले लगते) -२कवि रे ओ कवि रेजब पग-पग अपनी धरती पर
अंधकार ने डाले हों डेरे
इक मुट्ठी भर दानों के लिये
जब मरते बालक बहुतेरे
जब रात-दिना हर धन वाला
जीवन से गरीबों के खेले
जब जीना इक अपराध लगे -२
जब मानव दुख पर दुख झेले(ऐसे में बता तुझे हाय रे हाय क्यों
प्रीत के गीत भले लगते) -२