किसी कि शाम ए सादगी सहर का रंग पा गई - The Indic Lyrics Database

किसी कि शाम ए सादगी सहर का रंग पा गई

गीतकार - संत दर्शन सिंह जी महाराज | गायक - गुलाम अली | संगीत - अल्लाहुद्दीन खान | फ़िल्म - कलाम-ए-मोहब्बत (गैर फिल्म) | वर्ष - 1992

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किसी की शाम-ए-सादगी सहर का रंग पा गई
सबा के पाँव थक गये मगर बहार आ गईचमन की जश्न-गाह में उदासियाँ भी कम न थीं
जली जो कोई शम्म-ए-गुल कली का दिल बुझा गईबुतान-ए-रंग-रंग से भरे थे बुतकदे मगर
तेरी अदा-ए-सादगी मेरी नज़र को भा गईमेरी निगाह-ए-तिश्ना-लब की सर-ख़ुशी न पूछिये
के जब उठी निगाह-ए-नाज़ पी गई पिला गईख़िज़ा का दौर है मगर वो इस अदा से आये हैं
बहार 'दर्शन'-ए-हज़ीं की ज़िंदगी पे छा गई