ज़िक्र होता है जब कयामत का - The Indic Lyrics Database

ज़िक्र होता है जब कयामत का

गीतकार - आनंद बख्शी | गायक - मुकेश | संगीत - दान सिंह | फ़िल्म - मेरा प्यार | वर्ष - 1970

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ज़िक्र होता है जब कयामत का
तेरे जलवों की बात होती है
तू जो चाहे तो दिन निकलता है
तू जो चाहे तो रात होती है
तुझको देखा है मेरी नज़रोंने
तेरी तारीफ हो मगर कैसे
के बने ये नज़र ज़ुबां कैसे
के बने ये ज़ुबान नज़र कैसे
ना ज़ुबां को दिखाई देता है
ना निगाहो से बात होती है
तू चली आये मुस्कुराती हुयी
तो बिख़र जाये हरतरफ कलियाँ
तू चली जाये उठके पहलू से
तो उजड़ जाये फूलोंकी गलियाँ
जिस तरफ होती है नजर तेरी
उस तरफ कायनात होती है
तू निगाहों से ना पिलाए तो
अश्क़ भी पीनेवाले पीते है
वैसे जीने को तो तेरे बिन भी
इस ज़माने मे लोग जीते है
ज़िंदगी तो उसी को कहते है
जो बसर तेरे साथ होती है