कातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गया - The Indic Lyrics Database

कातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गया

गीतकार - दाग | गायक - गुलाम अली | संगीत - | फ़िल्म - यादगर गजलें (गैर फिल्म) | वर्ष - 1990

View in Roman अब हम भी जाने वाले हैं सामान तो गयाडरता हूँ देख कर दिल-ए-बेआरज़ू को मैं
सुनसान घर ये क्यूँ न हो मेहमान तो गयाक्या आई राहत आई जो कुंज-ए-मज़ार में
वो वलवला वो शौक़ वो अरमान तो गयादेखा है बुतकदे में जो ऐ शेख कुछ न पूछ
ईमान की तो ये है कि ईमान तो गयागो नामाबर से कुछ न हुआ पर हज़ार शुक्र
मुझको वो मेरे नाम से पहचान तो गयाबज़्म-ए-उदू में सूरत-ए-परवाना मेरा दिल
गो रश्क़ से जला तेरे क़ुर्बान तो गया
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ख़ातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गया
झूठी क़सम से आपका ईमान तो गयादिल ले के मुफ़्त कहते हैं कुछ काम का नहीं
उल्टी शिक़ायतें रहीं एहसान तो गयाअफ़्शा-ए-राज़-ए-इश्क़ में गो जिल्लतें हुईं
लेकिन उसे जता तो दिया जान तो गयाहोश-ओ-हवास-ओ-ताब-ओ-तवाँ 'दाग़' जा चुके
अब हम भी जाने वाले हैं सामान तो गयाडरता हूँ देख कर दिल-ए-बेआरज़ू को मैं
सुनसान घर ये क्यूँ न हो मेहमान तो गयाक्या आई राहत आई जो कुंज-ए-मज़ार में
वो वलवला वो शौक़ वो अरमान तो गयादेखा है बुतकदे में जो ऐ शेख कुछ न पूछ
ईमान की तो ये है कि ईमान तो गयागो नामाबर से कुछ न हुआ पर हज़ार शुक्र
मुझको वो मेरे नाम से पहचान तो गयाबज़्म-ए-उदू में सूरत-ए-परवाना मेरा दिल
गो रश्क़ से जला तेरे क़ुर्बान तो गया