कहीं चल ना दे रात का क्या ठिकाना - The Indic Lyrics Database

कहीं चल ना दे रात का क्या ठिकाना

गीतकार - मजरूह | गायक - रफ़ी, आशा | संगीत - मदन मोहन | फ़िल्म - एक शोला | वर्ष - 1958

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कहीं चल ना दे रात का क्या ठिकाना
इधर आओ ज़ुल्फ़ों में तुमको छिपा लें
कहीं देख ले फिर न हमको ज़माना
कहो तो सितारों के दीपक बुझा दें
ये रात आई है मिल भी लो चुपके-चुपके
गुज़र जाए कब ये न जाने
नज़र आज मिलाएँ हम-तुम कुछ ऐसी
ठहर जाएँ जाते ज़माने
नसीबों से मिलता है ये समाँ
कहीं देख ले फिर
तेरी ज़ुल्फ़ छू ली तो आवारा बादल
महकने बहकने लगा है
झुका चाँद का सर घटाओं का आँचल
सरकने ढलकने लगा है
तो फिर छेड़ दो दिल की दास्ताँ
कहीं चल न दे