है अगर दुश्मन ज़माना गम नहीं, गम नहीं - The Indic Lyrics Database

है अगर दुश्मन ज़माना गम नहीं, गम नहीं

गीतकार - मजरूह सुल्तानपुरी | गायक - आशा - रफी | संगीत - राहुल देव बर्मन | फ़िल्म - हम किसीसे कम नहीं | वर्ष - 1977

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है अगर दुश्मन ज़माना ग़म नहीं, ग़म नहीं
कोई आये, कोई आये, कोई आये, कोई
हम किसी से कम नहीं
क्या करे दिल की जलन को, इस मोहब्बत के चलन को
जो भी हो जाए के अब तो, सर से बांधा है कफ़न को
हम तो दीवाने दिलजले, जुल्म के साए में पले
डाल कर आँखों को तेरे रुखसारों पे
रोज ही चलते हैं हम तो अंगारों पे
आज हम जैसे जिगरवाले कहाँ
ज़ख्म खाया है तब हुए हैं जवाँ
तीर बन जाए दोस्तों की नज़र
या बने खंजर दुश्मनों की जुबान
बैठे हैं तेरे दर पे तो कुछ कर के उठेंगे
या तुझको ही ले जायेंगे या मर के उठेंगे
आज हम जैसे जिगरवाले कहाँ
ज़ख्म खाया है तब हुए हैं जवाँ
आज तो दुनिया नहीं, या हम नहीं
लो ज़रा अपनी खबर भी
एक नज़र देखो इधर भी
हुस्नवाले ही नहीं हम
दिल भी रखते हैं जिगर भी
झूम के रखा जो कदम
रह गई जंजीर-ए-सितम
कैसे रुक जायेंगे, हम किसी चिलमन से
जुल्फों को बांधा है, यार के दामन से
इश्क जब दुनिया का निशाना बना
हुस्न भी घबरा के दीवाना बना
मिल गए रंग-ए-हीना, खून-ए-जिगर
तब कही रंगी ये फ़साना बना
भेस मजनू का लिया मैंने जो लैला होकर
रंग लाया है दुपट्टा मेरा मैला होकर
इश्क जब दुनिया का निशाना बना
हुस्न भी घबरा के दीवाना बना
ये नहीं समझों के हम में दम नहीं, दम नहीं