बन ठन चली बोलो आई जाति वे जाति रे - The Indic Lyrics Database

बन ठन चली बोलो आई जाति वे जाति रे

गीतकार - मदन पाली | गायक - सुनिधि चौहान, सुखविंदर सिंह | संगीत - सुखविंदर सिंह | फ़िल्म - कुरुक्षेत्र | वर्ष - 2000

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बण ठण चली बोलो ऐ जाती वे जाती रे
बण ठण चली बोलो ऐ जाती रेपैरों में तेरे घुंघरू की बिजुरिया
छन छन छन छन छनकाती रे
बण ठण चली ...जो होना है आज हो जाए अरे घुंघरू चाहें टूट ही जाएं
आँधी आए तूफ़ां आएं या अम्बर झुक जाए हो
अरे बण ठण चली ...ये माना गज़ब की है तेरी जवानी
स.म्भल हो न जाए कहीं पानी पानी
क्यूं भरता है आहें आओ लड़ा लें निगाहें
मैं ऐसी नदिया हूँ जो सागर की प्यास बुझाए ओ ओ
बण ठण चली ...नशीली नशीली हैं तेरी अदाएं
जो देखे वो अपनी डगर भूल जाए
मुझे छू कर बना ले मुक़द्दर
जो मेरी आँखों में डूबे पार वही लग जाए ओ हो
अरे बण ठण चली ...