छल छल छलके इन आंखों की गगड़िया - The Indic Lyrics Database

छल छल छलके इन आंखों की गगड़िया

गीतकार - एस एच बिहारी | गायक - कविता कृष्णमूर्ति, मोहम्मद अज़ीज़ | संगीत - लक्ष्मीकांत, प्यारेलाल | फ़िल्म - जनम जनम | वर्ष - 1988

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हो छल छल छलके इन आँखों की गगरिया ये ज़ालिम जवानी तड़पाए
मलमल की ये हल्की चुनरिया कि जितना संभालूं गिर जाए
हो छल छल छलके ...अपने ही चंचल मन को कोसूं काहे को निकली थी बजरिया
किसने नज़रिया के तीर चलाए छलनी हो गई मोरी चुनरिया मोरी चुनरिया
देखो रे सखी कहीं भाग न जाए मोहे करके वो ज़ख्मी
हाय छल छल हे छल छल ...ऐ रुक एक मधुबन की हिरनिया कन्हैया तोरी नगरी में आए
एक झलक बस दरस दिखा दे काहे चुनरी में मुखड़ा छिपाए
ऐ रुक एक मधुबन की ...अपना भी दिल प्रेम दीवाना तुमरा अकेला दोष नहीं
आया कहां से जाना कहां है इतना भी अब तो होश नहीं
तोहरी नगरिया की उलझी डगरिया हो
जैसे जोगनिया हो लट उलझाए
रुक रुक हे रुक रुक ...ओ धरती चले आकाश को छूने लेके उठे जब अंगड़ाई
पर कितना है भोला तू परदेसिया तोरी अकल पे मैं शरमाई
होते हैं जवानी के दिन ऐसे जैसे चिड़िया के पर लग जाएं
छल छल ...