रुत है सुहानी बादल छाए रे - The Indic Lyrics Database

रुत है सुहानी बादल छाए रे

गीतकार - केदार शर्मा | गायक - मुकेश | संगीत - स्नेहल भटकर | फ़िल्म - ठेस | वर्ष - 1949

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सांझ भये घर आया पंछी

सांझ भये घर आया पंछी

भोर भये उड़ जाना है

जिस डाली पर किया बसेरा

उसको भी मुरझना है

चुप्ता के बिप्ता आती है

चोट चोट पे लगती है

तू ने जो कुछ उलझाया है

तुझ को ही सुलझाना है

बह्री दुनिया के कानों में

तू अपना राग सुनाए जा

टूटे तारों की बीना से

तुझ को जी बहलाना है

हिम्मत को मत हार बढ़े जा

आंधी और तूफ़ानों में

तुझ को अपनी मन्ज़िल पर ही

अपना देश बसाना है