कभी नेकी भी उसके जी में गर आ जाये है मुझसे - The Indic Lyrics Database

कभी नेकी भी उसके जी में गर आ जाये है मुझसे

गीतकार - ग़ालिब | गायक - तलत / गुलाम अली | संगीत - ताज अहमद खान / गुलाम अली | फ़िल्म - (गैर फिल्म) | वर्ष - 1956

View in Roman वो क़ाफ़िर जो ख़ुदा को भी न सौँपा जाये है मुझसे
ख़ुदाया जज़्बा-ए-दिल की मगर तासीर उल्टी है
कि जितना खीँचता हूँ और खिँचता जाए है मुझसे
वो बद-ख़ूँ और मेरी दास्तान-ए-इश्क़ तूलानी
इबारत मुख़्तसर कासिद भी घबरा जाये है मुझसे
तक़ल्लुफ़ बरतरफ़ नाराज़गी में भी सही लेकिन
वो देखा जाये, कब ये ज़ुल्म देखा जाये है मुझसे
हुये हैं पाँव ही पहले नबर्द-ए-इश्क़ में ज़ख़्मी
न भागा जाये है मुझसे न ठहरा जाये है मुझसे'>

कभी नेकी भी उसके जी में गर आ जाये है मुझसे
जफ़ायें कर के अपनी याद शर्मा जाये है मुझसे
उधर वो बदग़ुमानी है इधर वो नातवानी है
न पूछा जाये है उनसे न बोला जाये है मुझसे
सम्भलने दे ज़रा ऐ नाउम्मीदी क्या क़यामत है
के दामान-ए-ख़याल-ए-यार छूटा जाये है मुझसे
क़यामत है कि होये मुद्दई का हमसफ़र 'ग़ालिब्'
वो क़ाफ़िर जो ख़ुदा को भी न सौँपा जाये है मुझसे
ख़ुदाया जज़्बा-ए-दिल की मगर तासीर उल्टी है
कि जितना खीँचता हूँ और खिँचता जाए है मुझसे
वो बद-ख़ूँ और मेरी दास्तान-ए-इश्क़ तूलानी
इबारत मुख़्तसर कासिद भी घबरा जाये है मुझसे
तक़ल्लुफ़ बरतरफ़ नाराज़गी में भी सही लेकिन
वो देखा जाये, कब ये ज़ुल्म देखा जाये है मुझसे
हुये हैं पाँव ही पहले नबर्द-ए-इश्क़ में ज़ख़्मी
न भागा जाये है मुझसे न ठहरा जाये है मुझसे