कभी खामोश रहते हैं पी के दरस को तरस रहीं अंखियां - The Indic Lyrics Database

कभी खामोश रहते हैं पी के दरस को तरस रहीं अंखियां

गीतकार - राजिंदर कृष्ण | गायक - लता मंगेशकर, पुरुष स्वर | संगीत - सी रामचंद्र | फ़िल्म - आजाद | वर्ष - 1955

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ल : कभी ख़ामोश रहते हैं
कभी हम आह भरते हैं
किसी के वास्ते क्या-क्या सितम
इस दिल पे करते हैंजो वो नज़रों में नज़रें डाल कर
ख़ुद हम से ये पूछें
तो दिल पे हाथ रख कर
हम भी कह देंmale: क्याल : तुम पे मरते हैंmale: वाह वाह वाह
सुबहान अल्लाहल : पी के दरस को तरस रहीं अंखियाँ -२
( तरस रहीं अंखियाँ
बरस रहीं अंखियाँ ) -२
पी के दरस को तरस रहीं अंखियाँकोई क़दमों में उनके जा के
रख आये मेरे दिल को
के उनके सामने खुलती नहीं
ज़ालिम ज़बाँ मेरीपी के दरस को तरस रहीं अंखियाँ -२
( तरस रहीं अंखियाँ
बरस रहीं अंखियाँ ) -२
पी के दरस को तरस रहीं अंखियाँकिसी का हो के भी
उससे जुदा रहना ही पड़ता है
मोहब्बत ने दिया जो ग़म
वो ग़म सहना ही पड़ता है

कहाँ तक दर्द-ए-दिल कोई
छुपाये अपने सीने में
तड़प उठता है जब ये दिल
तो ये कहना ही पड़ता हैmale: क्याल : पी के दरस को तरस रहीं अंखियाँ -२
( तरस रहीं अंखियाँ
बरस रहीं अंखियाँ ) -२
पी के दरस को तरस रहीं अंखियाँ